संविधान के अनुच्छेद 164 अनुसार प्रदेश मंत्रिपरिषद में न्यूनतम 12 मंत्री – हेमंत
चंडीगढ़ – आज शनिवार 19 मार्च पंजाब राज भवन में प्रदेश के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित द्वारा आम आदमी पार्टी (आप ) पार्टी की सरकार में शामिल किये गए कुल 10 कैबिनेट मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाई गयी.
तीन दिन पूर्व बुधवार 16 मार्च को राज्यपाल द्वारा हालांकि शहीद भगत सिंह के जन्मस्थान जिला नवांशहर के खटकड़ कलां में भगवंत मान को प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की शपथ दिलवाई गई थी. तब मान के साथ किसी अन्य मंत्री को शपथ नहीं दिलवाई गई थी.बहरहाल, आज 10 मंत्रियों के शामिल होने के बाद पंजाब में भगवंत मान कैबिनेट/मंत्रिपरिषद की संख्या मुख्यमंत्री मान को मिलाकर 11 हो गयी है.
इसी बीच शहर निवासी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 164 – (I ए) का हवाला देते हुए बताया कि वहां स्पष्ट तौर पर उल्लेख है कि हर प्रदेश में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या 12 से कम नहीं होगी. इस प्रकार वर्तमान में पंजाब में सत्तासीन भगवंत मान मंत्रिपरिषद की सदस्य संख्या 11 उपरोक्त संवैधानिक प्रावधान के अनुकूल नहीं है एवं वह उससे एक कम है.
हेमंत ने आज इस सम्बन्ध में पंजाब के राज्यपाल , मुख्यमंत्री, उनके प्रधान सचिव और मुख्य सचिव आदि को लिखा भी है. अब यह देखना रोचक होगा कि क्या और तब इस पर कोई कार्यवाही की जाती है ?
उन्होंने आगे बताया कि वर्ष 2003 में केंद्र में तत्कालीन सत्तारूढ़ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा भारत की संसद मार्फ़त संविधान (91 वां संशोधन) कानून, 2003 पारित करवाकर उपरोक्त संवैधानिक प्रावधान अर्थात अनुच्छेद 164 -(1 ए) भारत के संविधान में डाला गया था जिसे 1 जनवरी 2004 से देश में लागू भी कर दिया गया था. गत 18 वर्षो से अब तक अर्थात जब से उपरोक्त संवैधानिक संशोधन लागू हुआ है आज तक देश की किसी संवैधानिक अदालत अर्थात न तो भारत की सुप्रीम कोर्ट और न ही प्रदेश की हाई कोर्ट द्वारा इस विषय पर कोई विस्तृत निर्णय/फैसला दिया गया है कि क्या किसी प्रदेश में मंत्रिपरिषद की कुल संख्या (मुख्यमंत्री को मिलाकर ) 12 से कम हो सकती है या नहीं ?
हालांकि उन्होंने बताया कि वर्ष 2008 में जब हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री धूमल को मिलाकर कुल 10 मंत्री थे, जो संख्या 12 से कम थी, तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी जिसकी सुनवाई दौरान हालांकि देश के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश केजी बालकृष्णन ने यह टिप्पणी तो अवश्य की थी कि ऐसा करने से किसी प्रकार की कोई अवहेलना नहीं है परन्तु सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस सम्बन्ध में कोई विस्तृत निर्णय/फैसला आदि नहीं दिया गया था. हेमंत का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा दिया गया कोई भी आदेश या निर्णय तभी भविष्य के लिए बाध्य होता है जब उसमें सम्पूर्ण कारणों की विश्लेषण/विवेचना सहित विस्तृत तौर पर संविधान या सम्बंधित कानून की व्याख्या की गयी हो. सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों द्वारा उनके समक्ष किसी लंबित मामले में मौखिक टिप्पणी को किसी विषय पर उस कोर्ट द्वारा दिया गया विस्तृत निर्णय नहीं कहा जा सकता है.

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