लुधियाना, 19 नवंबर:
हिंदी लेखक व स्थानीय पत्रकार मनोज धीमान ने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के हिंदी-विभाग में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, दिल्ली एवं केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में हुई दो दिवसीय (16 व 17 नवंबर) राष्ट्रीय संगोष्ठी में `हिंदी साहित्य में पंजाब के साहित्यकारों का योगदान’ विषय पर शोध-पत्र पढ़ा। इस संगोष्ठी संयोजक विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील थे जिसका आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) जसपाल सिंह संधु के कुशल नेतृत्व में हुआ।
धीमान ने संगोष्ठी के दूसरे दिन के पांचवें सत्र में मुख्य /अतिथि वक्ता के तौर पर अपना शोध-पत्र पढ़ा जिस के लिए उन्हें प्रमाण पत्र भी भेंट किया गया।
यहां लौट कर धीमान ने आज बताया कि उन्होंने अपने शोध-पत्र में उन्होंने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं कि हिंदी साहित्य में पंजाब के साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा और साहित्य का सृजन 10वीं सदी में अविभाजित पंजाब के माझा क्षेत्र लाहौर से शुरू हो गया था। उन्होंने पंजाब के हिंदी साहित्य पर प्रकाशित हो चुकी कुछ एक महत्वपूर्ण पुस्तकों का उल्लेख भी किया जिन में सन् 993 से लेकर वर्ष 2012 तक का विवरण दिया गया है। उन्होंने हिंदी साहित्य पर हुए व्यापक शोध का उल्लेख।
धीमान ने स्वीकार किया कि पंजाब के हिंदी साहित्य पर काफी कुछ लिखा जा चुका है। मगर, इसे ही अंत नहीं मान लिया जाना चाहिए क्योंकि किसी भी कार्य के लिए संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं।
इसलिए, इस क्षेत्र में भूतकाल, वर्तमान और भविष्य को लेकर और अधिक शोध कार्य किये जाने की आवश्यकता है। इस में न केवल साहित्यकार बल्कि पंजाब के विश्वविद्यालयों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जा सकती है। इससे पंजाब में रचित होने वाले हिंदी साहित्य को एक नई ऊर्जा और दिशा मिलेगी।
अपने शोध-पत्र में धीमान ने कहा कि पिछले समय में पंजाबी और हिंदी का विवाद था। आज भी शायद कुछ लोग चाहते हैं कि यह विवाद बना रहे ताकि उनकी राजनीति चलती रहे। लेकिन, साहित्य की कोई सीमा नहीं होती। किसी एक राज्य में रचित साहित्य किसी अन्य राज्य के पाठक पर अपनी छाप छोड़ सकता है। इसलिए साहित्य को भाषा के बंधन में नहीं बांधा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाब में हिंदी साहित्य अब तक जीवित ही नहीं बल्कि प्रफुल्लित हो रहा है। इसका श्रेय पंजाब के हिंदी साहित्यकारों को ही जाता है जो अपना सब कुछ दांव पर लगा कर साहित्य का सृजन कर रहे हैं। साहित्यकारों द्वारा उपन्यास, कहानी,कविता,नाटक, लघुकथा इत्यादि का सृजन किया जा रहा है।
अपने शोध-पत्र में धीमान ने आगे कहा कि पंजाब में पैदा हुए कुछ हिंदी साहित्यकार अन्य राज्यों में जा बसे हैं जो वहां भी अपना व पंजाब का नाम रोशन कर रहे हैं। इन में कमलेश भारतीय का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। दूसरी ओर, कुछ एक किसी न किसी कारणवश हिन्दीभाषी राज्यों से आकर पंजाब में बस गए हैं। इसलिए, भविष्य में इन साहित्यकारों के कार्य को भी नकारा नहीं जा सकेगा।

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