कोरोना काल में भी कारगर है राष्ट्रीय गुणी मिशन जंगल के ‘डॉ€टरÓ बचा रहे हैं शहरों में जीवन

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जयपुर 18 जून, 2021
कोरोना महामारी के दौर में आज अपनी सेहत बचाना ही सबसे अहम चुनौती बन गया है। ऑ€सीजन, वेंटीलेटर, इंजे€शन, आईसीयू जैसे हम सबकी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। कोरोना महामारी ने एक बार फिर हमें यह चुनौती दी है कि कैसे हम आधुनिक चिकित्सा पद्घति के दम पर जीवन बचा सकते हैं। मौजूदा दौर में यह हम सबके सामने सवाल है कि €या हमें पारंपरिक चिकित्सा पद्घति की आवश्यकता नहीं है? उदयपुर की 62 साल की भंवर धाभाई राष्ट्रीय गुणी मिशन के जरिए कोरोना काल में जड़ी-बूटियों से काढ़ा बनाकर बांट रही हैं। यह काढ़ा लोगों की इम्युनिटी तो बढ़ा ही रहा है, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्घति को भी एक नई पहचान दिला रहा है।
1988 में हुई शुरुआत
भंवर धाभाई ने बताया कि उन दिनों सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वे उदयपुर के ग्रामीण इलाकों में काम करती थी। कुराबड़ के आस-पास के गांवों में डिप्थीरिया बीमारी फैल गई थी। उनकी आंखों के सामने 10-15 बच्चों ने दम तोड़ दिया। इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्होंने दिल्ली तक यह बात पहुंचाई, तब कहीं जाकर डॉ€टरों ने सुध ली। लेकिन तभी उन्होंने ठान लिया था कि गांवों में लोगों को ईलाज के अभाव में नहीं मरने देना है। डॉ€टर नहीं पहुंचते तो वे स्वयं पारंपरिक जड़ी-बूटियों से ही ईलाज करेंगे। इस तरह राष्ट्रीय गुणी मिशन की शुरुआत हुई। आज पूरे देश में इसका नेटवर्क है। यह मिशन लोगों को पारंपरिक जड़ी-बूटियों के बारे में जागरूक करने के दौरान बताती है कि हमारे शरीर पर औषधि कैसे काम करती है और कैसे परंपरागत पद्घति से स्वस्थ रहा जा सकता है।
दो लाख से ज्यादा लोगों को पिलाया काढ़ा
भंवर धाभाई ने बताया कि पिछली बार जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ था, तो हमने अपनी संस्था के माध्यम से दो लाख से ज्यादा लोगों को पारंपरिक जड़ी-बूटियों से तैयार किया काढ़ा पिलाया था। इस बार भी इसकी लहर शुरू होते ही लोगों को काढ़ा वितरण किया जा रहा है। कोरोना महामारी में सबसे अहम रोल इम्युनिटी का है। वायरस से बचना तो लगभग नामुमकिन है, जिसकी इम्युनिटी बेहतर होगी वो उतना ही जल्दी वायरस को हरा देगा।
कोई फीस नहीं
उदयपुर के आस-पास जनजाति बाहुल्य वाले इलाकों में 30-35 लोगों की टीम है, जो जंगलों में रहते हैं। इन्हें अपने बुजुर्गों से जड़ी-बूटियों का ज्ञान प्राप्त हुआ है। भंवर धाभाई के शŽदों में इन्हें ÓगुणीÓ कहा जाता है। विरासत में मिले जड़ी-बूटियों के ज्ञान के सहारे वे पारंपरिक पद्घति से कई गंभीर बीमारियों का उपचार करते हैं। भंवर धाभाई ने बताया कि राजस्थान सहित देश के कई राज्यों में ऐसे ‘गुणी’ हैं। ये लोग ईलाज के बदले कोई फीस नहीं लेते हैं। डŽल्यूएचओ, आईयूसीएन और डŽल्यूडŽल्यूएफ जैसी संस्थाओं ने भी इन्हें टे्रेडिशनल हेल्थ प्रे€िटशनर्स का दर्जा दिया है।
जंगलों में छुपा सेहत का खजाना
राष्ट्रीय गुणी मिशन की संस्थापक भंवर धाभाई बताती है कि हमारे जंगलों में सेहत का खजाना छुपा हुआ है। जड़ी-बूटियों का प्रयोग करके डाइबिटीज, अस्थमा, चर्मरोग सहित अन्य कई बीमारियों का स्थायी निदान संभव है। क्षेत्र के बड़ी तालाब के पास ही ऐसी कई जड़ी-बूटियां हैं, जिनसे पेट से जुड़ी कई बीमारियों का उपचार हो सकता है। लेकिन लोगों को जानकारी ही नहीं है।
नई पीढ़ी तक पहुंचे पारंपरिक ज्ञान
धाभाई कहती है कि हमारे आयुर्वेद और औषधियों का ज्ञान समय के साथ गुमनाम होता जा रहा है। नई पीढ़ी को इन सबके बारे में बताने वाले बहुत कम लोग बचे हैं। राष्ट्रीय गुणी मिशन के माध्यम से हम अपनी प्राचीन ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं। हमारा मकसद पैसा कमाना नहीं है। बस, अनमोल ज्ञान का खजाना इतिहास में दबकर न रह जाए, इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार पारंपरिक जड़ी-बूटियों से ईलाज की पद्घति को मान्यता प्रदान करें और इसके परिणामों का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन होना चाहिए।
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