— 3 वर्ष की उम्र से क्रोनिक किडनी रोग से थी पीडि़त, मां ने किडनी देकर दिया नया जीवनदान
क्रोनिक किडनी रोग से पीडि़त 9 वर्षीय लडक़ी की फोर्टिस मोहाली में सफल किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई, 15 घंटे तक चली सर्जरी-
पांवटा साहिब, 18 अक्टूबर:
किडनी ट्रांस्पलांट सर्जरी में दानदाताओं का सावधानीपूर्वक चयन बहुत महत्वपूर्ण है, हालांकि अब ब्लड रिलेशन के अलावा अलग-अलग ब्लड ग्रुप में भी किडनी ट्रांस्पलांट का विस्तार बढ़ा है, जिससे कई गंभीर या डायलसिस की कगार पर पहुंचे मरीजों को बचाना सुनिश्चित हो पाया है। यह बात आज पांवटा साहिब पहुंंची जाने माने किडनी ट्रांस्पलांट सर्जन की टीम ने आयोजित एक पत्रकार वार्ता में कही, जिनके द्वारा हाल ही में क्रानिक किडनी डिजीज (सीकेडी) से जूझ रही 9 वर्षीय बच्ची को उसकी माता से मिली किडनी ट्रांसप्लांट करवा कर नया जीवनदान दिया गया है। आज फोर्टिस अस्पताल मोहाली से शहर में पहुंची किडनी ट्रांस्पलांट सर्जन की टीम में रीनल साइंसेज एंड किडनी ट्रांस्पलांट की एसोसिएट कंस्लटेंट डा. अन्ना गुप्ता के साथ सीनियर कंस्लटेंट एवं किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डा. सुनील कुमार एवं किडनी ट्रांसप्लांट कंस्लटंट डा. साहिल रैली शामिल थे।
डा. अन्ना गुप्ता ने कहा कि क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) यानि क्रोनिक किडनी फेल्योर जिसमें पीडि़त मरीज की किडनी धीरे धीरे काम करना बंद कर देती है तथा ज्यादातर मरीज डायलसिस पर निर्भर होते हैं, ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट (गुर्दा प्रत्यारोपण) ही मरीज को बचाने का एकमात्र उपचार रहता है। उन्होंने बताया कि किडनी ट्रांस्पलांट की स्थिति में माहिर ट्रांस्पलांट सर्जन एवं किडनी रोग विशेषज्ञों द्वारा सबसे अहम सावधानीपूर्वक किडनी दानदाता का चयन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहता है तथा इसके साथ ही यदि उत्तम टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर ट्रांस्पलांट सर्जरी को अंजाम दिया जाए तथा सर्जरी उपरांत मरीज की सही से देखभाल की जाए तो शत-प्रतिशत मरीज को जल्द राहत मिल सकती है।
उन्होंने बताया कि उनकी टीम द्वारा एक 9 वर्षीय बच्ची जिसे हाल ही में उसकी 32 वर्षीय माता द्वारा किडनी देकर बचाया गया है। 3 वर्ष की उम्र में बच्ची के क्रोनिक किडनी रोग और असामान्य सीएकेयूटी (जन्म से किडनी व मूत्रपथ में बीमारी) का पता चला इस दौरान 7 वर्ष की उम्र तक उसकी कई सर्जरी हुई। सर्जरी के बाद भी बच्ची की बिगड़ती हालत के कारण 7 वर्ष की उम्र में किडनी फेल्योर का पता चला, इस दौरान सप्ताह में उसका तीन बार डायलसिस करवाया जाता था। इसके बावजूद, उसके लक्षण कम नहीं हुए और उसका हीमोग्लोबिन स्तर लगातार कम होता गया जिसके लिए उसे कई बार रक्त चढ़ाया गया। उसे कई डायलिसिस कैथेटर भी डाले गए थे, जिसके कारण उसकी नसें थ्रोम्बोस्ड (ब्लाकड) हो गई थीं और डायलिसिस लाइन के माध्यम से रक्त संक्रमण हो गया था। बच्ची हाई ब्लड प्रैशर के कारण लगातार सिरदर्द की भी शिकायत करती एवं इससे उसके विकास पर असर पड़ रहा था।
डा. अन्ना ने बताया कि फोर्टिस में उनके अलावा उनकी टीम में शामिल किडनी ट्रांसप्लांट के कंस्लटेंट डॉ. सुनील कुमार एवं डा. साहिबल रैली, यूरोलॉजी व रोबोटिक सर्जरी के डायरेक्टर डा. एसके. सिंह, यूरो-ऑनकोलॉजी एवं रोबोटिक सर्जरी कंस्लटेंट डा. धमेन्द्र अग्रवाल, न्यूरो इंटरवेंशन एवं इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी कंस्लटेंट डा. विवेक अग्रवाल द्वारा जांच करने बाद सर्जरी की योजना बनाई गई। जिसके द्वारा बच्ची की मां की किडनी को डोनर के रूप में शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि 15 घंटे की सर्जरी प्रक्रिया में पहले माता की सर्जरी लेकर बच्ची में ट्रांस्प्लांट की गई।
मामले की जानकारी देते हुए डॉ. गुप्ता ने कहा कि मरीज के यूरिनरी ब्लेडर को गट लूप्स से दोबारा बनाया गया और पेट पर एक अलग चैैनल बनाया गया, जहां से अब बच्चा यूरिन कर रहा है। तब से मरीज का डायलिसिस बंद है और उसके शरीर की कार्यप्रणाली सामान्य हो गई है। उसके ग्रोथ पैरामीटर भी सामान्य हो गए है, जो पहले किडनी की बीमारी के कारण बाधित हो गए थे।

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