मेहर चंद महाजन डीएवी कॉलेज फॉर विमेन, चंडीगढ़ के दर्शन विभाग ने अंडरस्टैंडिंग वर्च्युज़ एंड वर्चुअस लाइफ: ए फिलॉसॉफिकल डेलिबरेशन’ और ‘अवर प्लेस इन स्पेस’ शीर्षक से ऑनलाइन आवधिक व्याख्यान आयोजित किए। इस कार्यक्रम में पंजाब विश्वविद्यालय में फिलॉसफी विभाग की चेयरपर्सन डॉ शिवानी शर्मा और मोहाली स्थित आईआईएसईआर में एसईआरबी अनुसंधान वैज्ञानिक डॉ स्मृति महाजन प्रमुख वक्ता रहे। सद्गुणों और सदाचारी जीवन पर व्याख्यान का उद्देश्य भारतीय और ग्रीक परंपराओं के परिप्रेक्ष्य में विचारों के इतिहास में सद्गुण और इसके विभिन्न प्रकारों की अवधारणा से परिचित होना और छात्रों को संस्कृतियों में आदर्श से परिचित कराना था। डॉ शिवानी ने जोर देकर कहा कि भारतीय दार्शनिक परंपरा यह सुनिश्चित करने में समृद्ध है कि जीवन को किस प्रकार सार्थक और विख्यात बनाया जाए और ग्रीक परंपरा के बारे में भी यह तथ्य स्वीकार किया जा सकता है। अपने ज्ञानवर्धक व्याख्यान में, डॉ शिवानी ने मानवजाति को प्राप्त विशेषाधिकारों के बारे में बताया और जीवन को सार्थक बनाने, सार्थक रूप से जीने का महत्व, पुण्य की प्राप्ति में पुरुषार्थ और आश्रम व्यवस्था की अवधारणा की भूमिका, वेदों द्वारा प्रतिपादित श्रेयस और प्रेयस के बीच अंतर और सदाचारी जीवन शैली अपनाने के साधनों पर प्रकाश डाला। डॉ स्मृति द्वारा ने ‘अवर प्लेस इन स्पेस’ पर व्याख्यान देते हुए आकाशगंगाओं के संदर्भ में ब्रह्मांड में विद्यमान प्रतिमान का सामान्य अवलोकन किया और बड़े पैमाने पर निर्मित संरचनाओं पर बात की जो ब्रह्मांड में मानव जाति के लिए एक स्थान निर्धारित करती हैं । विशेषज्ञ ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुई खोजों के विषय में और हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करते हुए आकाशगंगाओं- हमारे अपने मिल्कीवे और पड़ोसी आकाशगंगाओं के परिप्रेक्ष्य में विस्तार से चर्चा की। दोनों ही व्याख्यानों में छात्रों की उत्साहजनक भागीदारी देखी गई।
प्राचार्या डॉ. निशा भार्गव ने छात्रों में दार्शनिक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए दर्शन विभाग के इन प्रयासों की सराहना की। उन्होंने अपनी बात सद्गुणों और सदाचारी जीवन के शाब्दिक अर्थ को साझा करके शुरू की। सुकरात, अरस्तू और कांट जैसे महान दार्शनिकों का उदाहरण देते हुए, डॉ भार्गव ने एक सदाचारी जीवन जीने पर अपने विचारों को साझा किया, और कहा कि आत्म-प्रतिबिंब सदाचारी जीवन के लिए सबसे पहली आवश्यक शर्त है।
प्राचार्या डॉ. निशा भार्गव ने छात्रों में दार्शनिक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए दर्शन विभाग के इन प्रयासों की सराहना की। उन्होंने अपनी बात सद्गुणों और सदाचारी जीवन के शाब्दिक अर्थ को साझा करके शुरू की। सुकरात, अरस्तू और कांट जैसे महान दार्शनिकों का उदाहरण देते हुए, डॉ भार्गव ने एक सदाचारी जीवन जीने पर अपने विचारों को साझा किया, और कहा कि आत्म-प्रतिबिंब सदाचारी जीवन के लिए सबसे पहली आवश्यक शर्त है।

English






