तीरंदाजी में प्रतिस्पर्धी खेलों के रोमांच का अभाव, लेकिन खिलाड़ी खुद के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करता है
हरियाणा में भी इस खेल को लगातार दिया जा रहा है बढ़ावा
चण्डीगढ, 11 जून :- सोनल बुंदेले जब भी तीरंदाजी के मैदान में उतरती हैं, तो लोगों की उत्सुकता बढ़ जाती है क्योंकि यहां खेलो इंडिया यूथ गेम्स में वह अकेली महिला प्रतियोगिता मैनेजर हैं जो अपने आप में एक अनोखी बात तो है ही, साथ में यह एक प्रशंसनीय उपलब्धि भी है।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में, उनका दिन बहुत जल्दी शुरू होता है और कभी खत्म नहीं होता। उन्हें तकनीकी कर्मचारियों की निगरानी करने के साथ-साथ माहौल को एथलीटों के लिए सहज और आरामदायक बनाएं रखना भी सुनिश्चित करना होता है।
सोनल चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी के मैदान और हरियाणा सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई गई सुविधा से खुश हैं। वह बताती हैं कि कुल 64 तीरंदाज दो अलग-अलग आयोजनों में भाग लेंगे, जिनमें रिकर्व बो और कंपाउंड या बेयरबो शामिल हैं। इनमें से 20 युवा पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग ले चुके हैं। उनमें से दो अंडर-18 समूह में अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक भी हैं।
सोनल साई के सहयोग से खेलो इंडिया जैसे आयोजनों द्वारा प्रदान किए गए मंच की सराहना करते हुए कहतीं हैं कि वे कई बच्चों को उनके सपनों का पीछा करने में मदद कर रही हैं। इस खेल में कम आयु वर्ग के लिए प्रयोग किए जाने वाले कार्बन, एल्युमीनियम और लकड़ी से बने धनुष की कीमत लगभग 60,000 रुपये है जोकि बड़े आयु वर्गों के लिए 2 लाख रुपये तक बढ़ जाती है। खेल में खिलाड़ी के कद के अनुसार धनुष को सेट किया जाता है।
सोनल ने कहा कि इसके अलावा उनके अनुसार तीरंदाजी के खेल में थोडा दोहराव है क्योंकि धनुर्धारी दिन-ब-दिन एक ही अभ्यास करते हैं। इसमें प्रतिस्पर्धी खेलों के रोमांच का भी अभाव है, तीरंदाज ज्यादातर खुद के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करता है।

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