बच्चों की रीढ़ की हड्डी का आकार बदलना अब अभिशाप नहीं, ऐसे बच्चों के जीवन में लाया जा सकता है बदलाव : डा दीपक जोशी

Dr Deepak Joshi
ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਬਦਲਣਾ ਹੁਣ ਕੋਈ ਸਰਾਪ ਨਹੀਂ, ਅਜਿਹੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ 'ਚ ਤਬਦੀਲੀ ਸੰਭਵ : ਡਾ: ਦੀਪਕ ਜੋਸ਼ੀ
इलाज में देरी से बच्चे की रीढ़ की हड्डी ख़राब हो सकती है, जिससे उसके हृदय और फेफड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है
जटिल रीढ़ की हड्डी संबंधी विकारों से पीड़ित नाबालिग हो रहे है स्वस्थ : डा दीपक जोशी

बठिंडा, 19 जून, 2024

किशोरावस्था में रीढ़ की हड्डी का विकार या फिर रीढ़ की हड्डी का एक तरफ मुड़ना या आकार बदलना (स्कोलियोसिस) बच्चे की रीढ़ की हड्डी ख़राब कर सकता है तथा उसके हृदय और फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर भी इसका प्रभाव हो सकता है, वहीं अब हड्डियों के उपचार में आई तकनीकी क्रांति से स्कोलियोसिस से पीड़ित ऐसे बच्चों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है, यह बात आज बठिंडा में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में जाने माने हड्डियों के माहिर डाक्टर दीपक जोशी ने कही, जिनके द्वारा हाल ही में हड्डियों के उपचार में आई नवीनतम तकनीक से पेडियाट्रिक्स स्पाइनल डिफॉर्मिटिस से पीड़ित नाबालिग बच्चों के जीवन को बदल दिया है, जो उत्तरी क्षेत्र में अपनी तरह की पहली सर्जरी है।

इस मौके बातचीत करते हुए फोर्टिस अस्पताल मोहाली के ऑर्थोपेडिक्स स्पाइन विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. दीपक जोशी ने कहा कि स्कोलियोसिस जन्मजात हो सकता है या किशोरावस्था के दौरान हो सकता है। उन्होंने बताया कि स्कोलियोसिस ज्यादातर 10 से 16 साल की उम्र के 2 से 4 प्रतिशत बच्चों को होती है। लड़के और लड़कियां समान रूप से प्रभावित होते हैं। हालाँकि, लड़कियों में स्कोलियोसिस के बढ़ने की संभावना 10 गुना अधिक होती है। उन्होंने कहा कि स्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी का एक तरफ़ से मुड़ा हुआ वक्रता है और इसका निदान अक्सर किशोरों में किया जाता है। यह आमतौर पर आइडियोपैथिक होता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी विशेष कारण से नहीं होता है। उन्होंने बताया कि काइफोसिस, एडोलसेंट आइडियोपैथिक स्कोलियोसिस, कंजेनिटल (जन्मजात) स्कोलियोसिस और न्यूरोमस्कुलर स्कोलियोसिस जैसी बीमारियों से पीड़ित कई नाबालिग रोगियों का इलाज किया है।

डॉ. दीपक जोशी ने कहा कि हाल ही में उनके ऑर्थोपेडिक्स स्पाइन विभाग के स्कोलियोसिस डिवीजन ने बठिंडा के  एक 14 वर्षीय लड़का जो कि जन्मजात हेमीवर्टेब्रा (उसकी रीढ़ की हड्डी का एक हिस्सा विकसित नहीं हो रहा था) के साथ पैदा हुआ था, जिसके कारण इस लड़के की पीठ के मध्य भाग में गंभीर मोड़ आ गया था, जिससे उसे आगे की ओर झुकना और बगल की ओर झुकना पड़ता था। उपचार में देरी से बच्चे में एक विचित्र विकृति पैदा हो सकती थी, जिससे उसके विकास, महत्वपूर्ण अंगों पर असर पड़ता। डॉ. जोशी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने हाल ही में 4 घंटे की सर्जरी के दौरान युवा मरीज पर ‘हेमी-वर्टेब्रा एक्सीशन और काइफोस्कोलियोसिस करेक्शन’ की एक दुर्लभ प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। सर्जरी के अगले दिन ही बच्चा चलने लगा और तीन दिन बाद उसे बिना ब्रेस के अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वह पूरी तरह से ठीक हो गया है और आज सामान्य जीवन जी रहा है।

ऐसे ही एक अन्य राजस्थान के श्रीगंगानगर में रहने वाले 14 वर्षीय लड़के का जन्म रीढ़ की हड्डी के ‘जन्मजात काइफोसिस’ के साथ हुआ था, जिसमें गर्भ में बच्चे की रीढ़ की हड्डी का स्तंभ ठीक से विकसित नहीं हुआ था। डॉ. जोशी ने रोगी पर ‘पेडिकल सबट्रैक्शन ऑस्टियोटॉमी (पीएसओ)’ किया, जिससे विकृत रीढ़ की हड्डी को ठीक किया गया। बच्चा अगले दिन चलने में सक्षम हो गया और तीसरे दिन उसे छुट्टी दे दी गई।