डायरैक्टर, ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग, पंजाब को राज्य की पंचायतों द्वारा पास किए गए मजदूर विरोधी प्रस्ताव रद्द करवाकर आयोग को सूचित करने के आदेश
सरपंच ग्राम पंचायत, घनौरी खुर्द द्वारा पास प्रस्ताव सम्बन्धी डिप्टी कमीश्नर, संगरूर से 19 जून तक माँगी रिपोर्ट
चंडीगढ़, 13 जूनः
राज्य की कुछ पंचायतों द्वारा पास किए जा रहे मजदूर विरोधी प्रस्तावों का सख्त नोटिस लेते हुए पंजाब राज्य अनुसूचित जाति आयोग की चेयरपर्सन श्रीमती तजिन्दर कौर (सेवामुक्त आई.ए.एस.) ने डायरैक्टर, ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग, पंजाब को निर्देश दिए हैं कि वह राज्य की जिन पंचायतों द्वारा मजदूर विरोधी प्रस्ताव पास किये गए हैं उनको रद्द करवाएं और इसके साथ ही डायरैक्टर, ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग, पंजाब से तारीख 19 जून 2020 को ऐक्शन टेकन रिपोर्ट आयोग के समक्ष पेश करने के लिए कहा है।
इसके अलावा सरपंच ग्राम पंचायत घनौरी खुर्द, ब्लाॅक शेरपुर, जिला संगरूर द्वारा गाँव की लेबर के लिए धान की फसल लगाने का रेट 3800/- फिक्स करने, इसी रेट पर गाँव की लेबर को काम करने के लिए मजबूर करने और प्रस्ताव का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति का सामाजिक बायकाॅट करने के फरमान का भी सख्त नोटिस लिया है। उन्होंने इस सम्बन्धी डिप्टी कमीश्नर, संगरूर को जांच करके विस्तृत रिपोर्ट तारीख 19 जून 2020 को सम्बन्धित उप मंडल अफसर (सिविल) के द्वारा आयोग के सामने पेश करने के लिए कहा है।
चेयरपर्सन ने बताया कि आयोग के ध्यान में आया कि सरपंच ग्राम पंचायत घनौरी द्वारा सहमति प्रस्ताव तारीख 30-05-2020 जारी किया गया। इस प्रस्ताव में सहमति की गई है कि गाँव की लेबर के लिए धान की फसल लगाने का रेट 3800/- फिक्स किया गया और इस रेट में ही गाँव की लेबर को काम करना पड़ेगा। इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि गाँव की लेबर को पहले तो गाँव का काम करना पड़ेगा, यदि वह गाँव का काम छोड़कर बाहर के गाँव में काम पर जाते हैं तो सारा गाँव उनको अपने-अपने खेतों में घुसने नहीं देगा। इसके अलावा इस प्रस्ताव में यह भी सहमति की गई कि गाँव में दिहाड़ी का रेट 300/- रूपए प्रति दिन है। शाम की रोटी नहीं देनी और दैनिक वेतन भोगी व्यक्ति अपने बर्तन घर से लेकर आएगा और यदि गाँव का कोई भी निवासी इस हुक्म का उल्लंघन करता है तो उसका सामाजिक बायकाॅट किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि कानून के अनुसार पंचायत को ऐसा प्रस्ताव / फरमान जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे प्रस्तावों से गाँवों में वर्गवाद को शह मिलती है और भाईचारक सांझ को खतरा पैदा होता है।
श्रीमती तेजिन्दर कौर ने कहा कि सोशल मीडिया के द्वारा यह भी पता चला है कि गाँवों में ज्यादातर मजदूर अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित हैं।

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