चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने दाना मटर की नई रोग प्रतिरोधी किस्म विकिसत की

Mathematics and Data contribute significantly in research work: Vice-Chancellor Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने दाना मटर की नई रोग प्रतिरोधी किस्म विकिसत की

चंडीगढ़, 22 दिसंबर – चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिकों ने इस वर्ष दाना मटर की नई रोग प्रतिरोधी किस्म एच.एफ.पी.-1428 विकिसत कर एक और उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है। दाना मटर की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की ‘फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति’ द्वारा नई दिल्ली में आयोजित बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है।

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि रबी में बोई जाने वाली दाना मटर की एच.एफ.पी.-1428 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों के सिंचित क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है जिनमें जम्मू और कश्मीर के मैदानी भाग, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड राज्य शामिल हैं।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों को इस उपलब्धि पर बधाई दी और भविष्य में भी निरंतर प्रयासरत रहने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दाना मटर की अपर्णा, जयंती, उत्तरा, एच.एफ.पी.-9426, हरियल, एच.एफ.पी.-529 व एच.एफ.पी.-715 किस्में विकसित की जा चुकी हैं।

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि रबी में सिंचित क्षेत्रों में काश्त की जाने वाली दाना मटर की इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी फसल कम अवधि (लगभग 123 दिन) में पककर तैयार हो जाती है। यह हरे पत्रक एवं सफेद फूलों वाली बौनी किस्म है व इसके दाने पीले-सफेद (क्रीम) रंग के मध्यम आकार व थोड़ी झुर्रियों एवं हल्के बेलनाकार होते हैं। इसके पौधे सीधे बढने वाले होते हैं इसलिए फलियां लगने के बाद गिरते नहीं हैं, जिससे इसकी उत्पादकता नहीं घटती एवं कटाई भी आसान हो जाती है।

उन्होंने बताया कि इसकी औसत पैदावार 26-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं अधिकतम पैदावार 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है। यह किस्म सफेद चूर्णी, एस्कोकायटा ब्लाइट व जड़ गलन जैसे रोगों की प्रतिरोधी है एवं इसमें रतुआ का प्रकोप भी कम होता है। इसके अतिरिक्त दाना मटर की इस किस्म में एफिड जैसे रस चूसक कीट एवं फली छेदक कीटों का प्रभाव भी पहले वाली किस्मों की तुलना में बहुत कम होगा।

इस उपलब्धि को प्राप्त करने में विश्वविद्यालय के दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश यादव, डॉ. रविका, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. ए.के. छाबड़ा, डॉ. रामधन जाट, डॉ. तरुण वर्मा एवं डॉ. प्रोमिल कपूर का विशेष योगदान रहा है।