सत्ताधारी कांग्रेस ने निजी चीनी मिल माफिया के सामने घुटने टेके – कुलतार सिंह संधवां
कहा – कृषि को बर्बाद करने के लिए मोदी के नक्शे कदम पर चल रही है सत्ताधारी कांग्रेस
राणा गुरजीत की नियुक्ति पर उठाए सवाल,मंत्री सुक्खी रंधावा का मांगा इस्तीफा
चंडीगढ़, 20 अगस्त 2021
आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब किसान विंग के अध्यक्ष और विधायक कुलतार सिंह संधवां ने राज्य सरकार की ओर से साढ़े चार साल बाद गन्ने के दामों में मामूली बढ़ोतरी को सिरे से खारिज करते हुए उस पर नरेंद्र मोदी सरकार की तरह अन्नदाता को धोखा देने का आरोप लगाए हैं।
शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय से जारी एक बयान में कुलतार सिंह संधवां ने कहा कि सत्ताधारी कांग्रेस गन्ना किसानों के लिए बहुत देर से आगे आई लेकिन फिर भी किसानों को इसका फायदा नहीं हुआ। राज्य सरकार द्वारा गन्ने की कीमतों (एसएएपी) में महज 15 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी का फैसला बेहद निराशाजनक और किसान-हत्या जैसा कदम है, क्योंकि इस से पहले 2017-18 में यह केवल 10 रुपये प्रति क्विंटल था।
संधवां ने बताया कि 15 रुपये की मामूली वृद्धि से गन्ने की खरीद मूल्य में पिछले 5 सालों में सिर्फ 5 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई लेकिन इस दौरान गन्ने की लागत में प्रति एकड़ 30 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। जो लागत 2017 में 30 हजार रुपए प्रति एकड़ थी, वह मौजूदा समय में बढ़कर 40 से 42 हजार प्रति एकड़ हो गई है।
संधवां ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की तरह पंजाब सरकार भी कुछ कारोबारी घरानों के दबाव में कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विशेषज्ञों द्वारा गन्ने के दामों को लेकर दिए गए सुझावों को कूड़ेदान में फेंकती आ रही है।
पड़ोसी राज्य हरियाणा गन्ना किसानों को वर्तमान में 358 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान कर रहा है, जो पंजाब से 30-35 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है, जहां लागत लगभग समान है। इतना ही नहीं, एक ही कृषि क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 4 राज्यों हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश में से पंजाब सरकार अपने गन्ना किसानों को सबसे कम दाम दे रही है। जिस एसएपी की पंजाब सरकार ने अब घोषणा की है, हरियाणा सरकार सात साल पहले इन कीमतों का भुगतान करती थी।
संधवां ने यह भी आरोप लगाया कि पंजाब सरकार किसानों की नहीं बल्कि उसके विधायकों और निजी चीनी मिल माफिया की सरकार है। कांग्रेस विधायक राणा गुरजीत सिंह को गन्ना विकास समूह में शामिल करके तथा फिर से मूल्य तय करने वाली मीटिंग का हिस्सा बनाकर, सत्ताधारी कांग्रेस ने खुद ऐसे आरोपों पर मुहर लगा दी है। संधवां ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर सवाल किया कि एक निजी मिल मालिक जो हमेशा अपने लाभ की तलाश में रहता है, वह किसानों के अधिकारों के बारे में कैसे बात कर सकता है?
संधवां ने कहा कि पंजाब की 16 गन्ना मिलों में से 9 सहकारी और 7 निजी हैं। शिअद-भाजपा और कांग्रेस की किसान विरोधी नीतियों के कारण सहकारी मिलों की हालत खराब हो गई है और क्षमता कम हो गई है जिसके कारण आज 70 प्रतिशत गन्ने पर निजी मिलों का एकाधिकार है।
यह कड़वा सच सहकारी विभाग के मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के लिए एक बड़ी नाकामी है। उन्होंने आगे कहा कि रंधावा अपने पिछले साढ़े चार साल के कार्यकाल में सहकारी चीनी मिलों की स्थिति में सुधार करने या किसानों को सहकारिता विभाग की ओर से सहायता प्रदान करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। इस नाकामी के लिए मंत्री रंधावा को नैतिक रूप से इस्तीफा दे देना चाहिए।
संधवां के अनुसार अगर सहकारी मंत्रालय तथा सहकारी चीनी मिल गन्ना उत्पादकों के लिए ईमानदारी और दृढ़ता से काम करती, तो न केवल गन्ना क्षेत्र में वृद्धि होती बल्कि राज्य में निजी चीनी मिल माफिया भी एकाधिकार नहीं कर पाते ।
संधवां ने लंबे समय से खड़े गन्ने के बकाया के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि गन्ना नियंत्रण बोर्ड-1966 के अनुसार यदि कोई मिल 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करती है, तो किसान 15 प्रतिशत ब्याज का हकदार है। लेकिन यहां पहले से ही 160 करोड़ रुपए का बकाया खड़ा है जिसमें से 106 करोड़ का बकाया अकाली, कांग्रेस और अन्य बड़े राजनीतिक नेताओं की निजी मिलों पर है।
संधवां ने मांग की है कि सरकार किसानों को गन्ने की खेती के नए सीजन से पहले सहकारी तथा प्राइवेट मिलों को किसानों के बकाये के भुगतान करने के आदेश दे। किसानों के लगातार उत्पीड़न के कारण पंजाब में गन्ने के क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है जो कृषि विविधीकरण अभियान के लिए एक बड़ा झटका है।

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