चंडीगढ़, 26 अगस्त 2025
हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री श्याम सिंह राणा ने कहा कि राज्य सरकार “साउथर्न राइस ब्लैक-स्ट्रिक ड्वार्फ वायरस” को लेकर सचेत है। कृषि वैज्ञानिक इस पर निगरानी कर रहे हैं और किसानों को जागरूक किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि जैविक खेती और धन की सीधी बिजाई में इस वायरस से नुकसान की कोई सूचना नहीं है। अगर किसान राज्य सरकार की कृषि नीति और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार धान की बिजाई करें तो इन बिमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है।
कृषि मंत्री आज विधानसभा सत्र के दौरान सदन में कुछ सदस्यों द्वारा लाए गए ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब दे रहे थे।
श्री श्याम सिंह राणा ने बताया ने बताया कि “साउथर्न राइस ब्लैक-स्ट्रिक ड्वार्फ वायरस”(SRBSDV) एक विषाणु जनित रोग है जो धान की फसल को प्रभावित करता है और भारत के कई धान-उत्पादक क्षेत्रों में चिंता का विषय बन चुका है। यह रोग “सफेद पीठ वाली फुदका” (White-Backed Plant Hopper-WBPH) नामक वाहक द्वारा फैलता है, जो धान के पौधों का रस चूसकर संक्रमित पौधों से स्वस्थ पौधों में वायरस को फैलाता है।
उन्होंने बताया कि इस वायरस के कारण संक्रमित धान के पौधों की सामान्य वृद्धि रुक जाती है, जिससे पौधे बौने रह जाते हैं और उनकी ऊँचाई सामान्य से बहुत कम हो जाती है। उनकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की हो जाती हैं, नई कलियों का विकास धीमा पड़ जाता है या पूरी तरह रुक जाता है। जड़ों का रंग भूरा पड़ जाता है और वे पर्याप्त विकसित नहीं हो पाती , जिससे पौधे की पानी और पोषक तत्व सोखने की क्षमता कम हो जाती है।
कृषि मंत्री ने बताया कि इस वायरस का प्रकोप हरियाणा में सबसे पहले खरीफ 2022 के मौसम में पाया गया था। खरीफ 2022 में कुछ ही मामले सामने आए थे, लेकिन समय पर की गई कार्रवाई और चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) तथा हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा चलाई गई जागरुकता मुहिम से बड़े नुकसान को रोक लिया गया। खरीफ 2023 और 2024 में प्रभावी रोकथाम और किसानों में जागरुकता के कारण रोग का कोई प्रकोप नहीं हुआ। खरीफ 2025 से पहले किसानों को भलिभाँति जागरूक किया गया और सावधानियाँ दोहराई गई।
इसके बावजूद 2025 में यह रोग पुनः उभरकर सामने आया। सबसे पहले इसके मामले कैथल जिले से मिले और बाद में अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद और पंचकूला जिलों से भी रिपोर्ट हुए। इन क्षेत्रों के किसानों ने अपने खेतों में पौधों के असामान्य रूप से बौना होने की शिकायत की। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने विस्तृत सर्वेक्षण किया है जिसमें तथ्य पाए गए कि यह रोग सबसे अधिक हाइब्रिड धान की किस्मों में पाया गया, उसके बाद परवल (गैर-बासमती) और फिर बासमती धान की किस्मों में इसकी समस्या मिली है। यह समस्या मुख्यतः उन खेतों में अधिक देखी गई जहाँ किसान 25 जून से पहले धान की रोपाई कर चुके थे।
कृषि मंत्री ने बताया कि उक्त वायरस अथवा बीमारी की पुष्टि हेतु चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) के वैज्ञानिकों ने संक्रमित पौधों के नमूने लेकर RT-PCR (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन) तकनीक से परीक्षण किया। इसके परिणामों ने पुष्टि की कि पौधे “साउथर्न राइस ब्लैक-स्ट्रिक ड्वार्फ वायरस” से संक्रमित हैं।
उन्होंने इस वायरस से बचाव के क़दमों की जानकारी देते हुए बताया कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) ने धान की फसल में एस.आर.बी.एस.डी.वी. (SRBSDV) से बचाव हेतु किसानों को एडवाइजरी जारी की गई। इसके अलावा प्रभावित जिलों में कुल 235 जागरूकता शिविर आयोजित किए गए, जिनमें 5,637 किसानों को रोग प्रबंधन उपायों की जानकारी दी गई तथा किसानों को “सफेद पीठ वाली फुदका” वाहक को नियंत्रित करने के लिए अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी गई।
श्री श्याम सिंह राणा ने सदन को अवगत करवाया कि लगभग 40 लाख एकड़ में बोई गई धान की फसल में से लगभग 92,000 एकड़ को वायरस से प्रभावित पाया गया है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार प्रभावित जिलों में 656 एकड़ में धान का पुनः रोपण किया गया है। कुछ जिलों में संक्रमण का स्तर अपेक्षाकृत कम रहा और प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट करने से इस पर प्रभावी नियंत्रण पाया गया। प्रभावित खेतों में अनुमानित फसल क्षति अपेक्षाकृत कम रही है, जो लगभग 5 से 10 प्रतिशत तक है।
उन्होंने आगे बताया कि कृषि उपनिदेशक, अंबाला ने सूचना दी है कि 6,350 एकड़ धान की फसल वायरस से प्रभावित हुई है, जिसमें प्रभावित क्षेत्र में अनुमानित उपज हानि 5-10 प्रतिशत आंकी गई है। जब वायरस का प्रकोप पाया गया तो कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने तुरंत कार्रवाई की। भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा हरियाणा का कृषि विभाग की एक संयुक्त टीम ने सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण 06 अगस्त 2025 को ब्लॉक साहा के गाँव मुलाना, हमीदपुर और नाहौनी तथा 07 अगस्त 2025 को अंबाला-1 के गाँव सरंगपुर और मतेहरी शेखां में किया गया। सर्वेक्षण के दौरान, धान के बौनापन रोग का ज्ञात वाहक( व्हाइट बैक्ड प्लांट हॉपर-WBPH) खेतों में नहीं पाया गया। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में सीमित संख्या में बौने पौधे अवश्य देखे गए। यह देखा गया कि किसानों ने पहले ही अपने खेतों में कीटनाशक का छिड़काव कर दिया था, जिससे सर्वेक्षण के समय इस वाहक (WBPH) की उपस्थिति नहीं पाई गई।
कृषि मंत्री ने बताया कि किसानों को अपने खेतों की सतर्कता से लगातार निगरानी बनाए रखने तथा कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। उन्होंने बताया कि डाइनाइट्रोफ्यूरॉन 20% SG (ओशीन या टोकन) @ 80 ग्राम/एकड़ या पाइमेट्रोज़ीन 50% WG (चेस) @ 120 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 40-50 मिली/एकड़, 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाए। उन्होंने बताया कि आवश्यकता पड़ने पर WBPH के प्रकोप के अनुसार छिड़काव दोहराया जा सकता है। किसानों को यह भी सलाह दी गई कि वे खेतों में जलस्तर कम रखें, यूरिया का संतुलित उपयोग करें और लाइट-ट्रैप लगाएँ। इसके अतिरिक्त, खेतों में पाए जाने वाले बौने पौधों को उखाड़कर नष्ट किया जाए ताकि आगे नुकसान न हो। अनेक प्रभावित किसानों ने बताया कि रोकथाम के उपाय अपनाने के बाद संक्रमण पास के दूसरे पौधों तक नहीं फैला।
उन्होंने जानकारी दी कि फसल को वायरस से बचाने हेतु सर्वोत्तम व्यावहारिक उपायों की पहचान से संबंधित अनुसंधान के संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) ने किसानों को परामर्श केवल सहायक अनुसंधान कार्य और प्रौद्योगिकी के सत्यापन के उपरांत ही जारी किए हैं।
उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर यह रोग कुछ विशेष सीमित क्षेत्रों में प्रकट हुआ है, अधिकांश धान के खेत अब भी अप्रभावित हैं।
कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि विभाग ने न केवल किसानों को संक्रमित पौधों को हटाने की सलाह दी, बल्कि व्यापक जागरूकता अभियान चलाया। समाचार पत्रों में विज्ञापनों के माध्यम से व्यापक प्रचार किया गया और किसानों को रोग फैलाने वाले वेक्टर (WBPH) के रासायनिक नियंत्रण की भी सलाह दी। इन संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप बौनापन रोग बहुत ही छोटे क्षेत्र तक सीमित रहा और धान की फसल पर इसका प्रभाव बहुत कम पड़ा।
उन्होंने बताया कि समय पर किए गए उपायों के कारण रोग का प्रकोप अब नियंत्रित हो चुका है। यद्यपि वर्तमान में यह रोग कोई बड़ा खतरा नहीं है, फिर भी चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) के वैज्ञानिक तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारी स्थिति की निरंतर निकटता से निगरानी कर रहे हैं।
राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसानों को इनपुट सब्सिडी दी जाती है, जिसकी सीमा प्रति किसान 5 एकड़ तक है। साथ ही गेहूं, धान या गन्ना जैसी फसलों में बाढ़, जलभराव, आग, भारी वर्षा, ओलावृष्टि, कीट प्रकोप या धूलभरी आंधी जैसी घटनाओं के कारण हानि 25 प्रतिशत या उससे अधिक होनी आवश्यक होती है। वर्तमान मामले में, खरीफ 2025 सीजन के दौरान “साउथर्न राइस ब्लैक-स्ट्रिक ड्वार्फ वायरस” के प्रकोप के कारण धान की फसल में हानि लगभग 5 से 10 प्रतिशत के बीच दर्ज की गई है।

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