कहा कि जम्मू और कश्मीर के लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है
कहा कि विधेयक को जम्मू और कश्मीर, शिरोमणी अकाली दल तथा क्षेत्रीय दलों के विचारों को ध्यान में रखते हुए पारित नही किया गया जिन्होने केंद्रीय शासित प्रदेश में पंजाबी को राजभाषा के रूप मे शामिल करने का समर्थन किया था
चंडीगढ़/23सितंबर: शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सरदार सुखबीर सिंह बादल ने आज जिस तरह से जम्मू-कश्मीर राजभाषा विधेयक, 2020 को संसद में दबाया गया उस पर गहरा दुख जताया और कहा कि यह बेहद निंदनीय है कि पंजाबी भाषा के समर्थन में जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज को दबाया गया है।
यहां एक प्रेस बयान जारी करते हुए सरदार सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि यह गहरी चिंता का विषय है कि संसद के समक्ष विधेयक को मंजूरी के लिए रखते समय संसदीय प्रक्रियाओं का पालन नही किया गया। उन्होने कहा कि इस विधेयक को कल न तो लोकसभा के एजेंडें में तथा न ही आज राज्यसभा में रखा गया था। आज भी यह विपक्ष की अनुपस्थिति में अंतिम क्षणों में पारित किया गया है।
सरदार सुखबीर सिंह बादल ने इस तथ्य की निंदा की कि इस विधेयक को जम्मू-कश्मीर के अन्य क्षेत्रीय दलों की आपत्तियों पर विचार किए बिना मंजूरी के लिए लिया गया था। उन्होने लोकसभा में बोलते हुए कहा कि पंजाबी न केवल केंद्र शासित प्रदेश में बड़ी संख्या के लोगों की मातृभाषा थी बल्कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान के अनुसार एक मान्यता प्राप्त भाषा भी थी। ‘ नेशनल कांफ्रेंस के फारूख अबदुल्ला जोकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री हैं ने मेरा समर्थन किया और कहा कि बड़ी संख्या में कश्मीरी पंजाबी भाषा बोलते हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भी केंद्र शासित प्र्रदेश में पंजाबी को राजभाषा के रूप में शामिल करने का समर्थन किया है।
सरदार बादल ने कहा कि महाराजा रंजीत सिंह के खालसा राज के समय से ही जम्मू-कश्मीर में पंजाबी बोली जा रही थी और इसे शिक्षा के माध्यम के रूप में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता था और 1981 तक उर्दू के साथ साथ एक अनिवार्य भाषा भी थी। ‘जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन पंजाबी थे और अब भी पंजाबियों की आबादी राज्य का तीन प्रतिशत है।
सरदार बादल ने इस पूरे घटनाक्रम को लोकतंत्र के लिए दुखद दिन बताते हुए कहा कि संविधान के निर्माता भारत के एक बहु-धार्मिक, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राष्ट्र के रूप में एक दृष्किोण से प्रेरित थे और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति सम्मान को इस आदर्श के संरक्षण और संवर्धन के लिए इसे एक महत्वपूर्ण लड़ी के रूप में देखा जाता था। उन्होने इस बात पर रोष जताया कि जहां पंजाबी को राजभाषा की सूची से बाहर रखा गया है, वहीं अंग्रेजी को इस सूची में शामिल किया गया है। उन्होने कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर के साथ साथ हर जगह पंजाबियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।

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