सौर विनिर्माण और सौर आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाये बिना और नवीकरणीय ऊर्जा के लिये पर्याप्त भंडारण सुविधा तैयार किये बिना ‘नेट जीरो’ केवल एक लक्ष्य बनकर रह जायेगाः केन्द्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने आईएसए सम्मेलन में कहा

‘‘ऊर्जा भंडारण क्षेत्र में वैकल्पिक रसायनों में शोध की आवश्यकता’’ – आईएसए अध्यक्ष श्री आर.के. सिंह

‘‘विकासशील देशों के लिये बिजली को अधिक किफायती बनाने के लिये सौर ऊर्जा दक्षता में सुधार की जरूरत’’

दिल्ली,  01 NOV 2023 

केन्द्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के अध्यक्ष श्री आर.के. सिंह ने कहा है कि जब तक पूरी दुनिया मिलकर सौर विनिर्माण क्षमता और उससे जुड़ी सहायक आपूर्ति श्रृंखला में विविधता में कमी  की समस्या का समाधान नहीं करती है ‘नेट जीरो’ की सोच एक लक्ष्य बनकर रह जायेगी। श्री सिंह ने स्वच्छ ऊर्जा बदलाव के लिये नवीन प्रौद्योगिकी पर आज  नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन सभा के छठे सत्र के साथ आयोजित एक दिवसीय उच्च स्तरीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में यह कहा। सम्मेलन का आयोजन नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार, एशियाई विकास बैंक और अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा सोसायटी द्वारा मिलकर किया जा रहा है।

आईएसए अध्यक्ष ने यह भी कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा का बड़े पैमाने पर और चौबीसों घंटे प्रावधान करने के लिये भंडारण सुविधा बहुत  महत्वपूर्ण हो जाती है। ‘‘भंडारण एक समस्या बना हुआ है, विकसित देश ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव पर बात तो करते रहते हैं लेकिन वह इसके लिये कुछ करते नहीं है, वह न तो भंडारण सुविधा बढ़ाते हैं और न ही मौजूदा प्रौद्योगिकी के मामले में कोई प्रगति करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विनिर्माण क्षमता का विस्तार नहीं हुआ। सौर विनिर्माण क्षमता का 90 प्रतिशत केवल एक देश में है जो कि ज्यादातर एक रसायन अर्थात लीथियम आयन पर निर्भर है। इसलिये इससे आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियां बढ़ गई हैं जो कि कोविड-19 महामारी के दौरान सामने आईं।’’ श्री सिंह ने जोर देते हुये कहा कि चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता इसकी भंडारण सुविधा के बिना संभव नहीं है। उन्होंने कहा ‘‘जब तक हमारे पास भंडारण सुविधा नहीं होगी एक सीमा से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाना बेकार होगा। हम यदि क्षमता का विस्तार करते हैं तो हमारे पास दोपहर के समय पर्याप्त मात्रा में सौर ऊर्जा उपलब्ध होगी, लेकिन भंडारण सुविधा के अभाव में यह सब बेकार जायेगी। जहां तक पवन ऊर्जा की बात है, जब यह उपलब्ध होगी, एक क्षमता से अधिक यह भी बेकार जायेगी, यदि हमारे पास इसकी भंडारण सुविधा नहीं होगी।’’

आईएसए अध्यक्ष ने कहा, जहां एक तरफ भारत ऊर्जा बदलाव के मामले में तेजी से आगे बढ़ने वाले देश के तौर पर उभरा है, वहीं विनिर्माण क्षमता में कमी की वजह से देश चुनौतियों का सामना करता रहा है।

‘‘विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के साथ ही भंडारण के लिये वैकल्पिक रसायनों में शोध की जरूरत’’

बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने कहा कि इन मुद्दों से वैकल्पिक रसायनों और विनिर्माण क्षमता बढ़ाने में निवेश और शोध की जरूरत पैदा होती है। ‘‘मानव जाति के तौर पर हमें वैकल्पिक रसायनों की खोज करने और दुनियाभर में विनिर्माण क्षमताओं को स्थापित करने में अपना पैसा लगाने की जरूरत है। भारत में हमने दोनों काम करने का फैसला किया है। हमने पॉलिसिलिकॉन विनिर्माण स्थापना के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शुरू की हे। वर्ष 2030 तक हमारे पास सौर माड्यूल के लिये करीब 100 गीगावाट विनिर्माण क्षमता होगी जिसमें से करीब 50 गीगावाट पूरी तरह से पॉलिसिलिकॉन और वेफर के साथ जुड़ी होगी।’’

आईएसए अध्यक्ष ने इस बात को स्वीकार किया कि प्रौद्योगिकी के मामले में काफी प्रगति हुई है लेकिन फिर भी आपूर्ति श्रृंखला के मामले में समस्या बनी हुई है। ‘‘जो भी प्रगति हुई है वह केवल एक देश में हुई है। सभी देशों को आपस में मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि सौर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आगे बढ़ने को हम नये शोध करें। यह शोध केवल एक देश तक सीमित नही हो, बल्कि व्यापक स्तर पर होना चाहिये।’’

‘‘विकासशील देशों के लिये बिजली को किफायती बनाने के लिये सौर दक्षता में सुधार की जरूरत’’

आईएसए अध्यक्ष ने इस बात को भी रेखांकित किया कि सौर प्रौद्योगिकी दक्षता में सुधार पर काम करने की जरूरत है ताकि बिजली की लागत कम हो, जो कि विशेषरूप से विकासशील देशों के लिये जरूरी है। ‘‘जब हम जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की बात करते हैं, समस्या यथावत है। हमें इन मुद्दों का मिलकर समाधान करना होगा। हमें सौर उुर्जा के क्षेत्र में दक्षता बढ़ानी होगी, ये जरूरतें और बढ़ेंगी। जब हमने इस क्षेत्र में अपनी यात्रा शुरू की थी हमें एक मेगावाट के लिये पांच एकड़ जमीन की जरूरत होती थी, आज हमें केवल 3.5 एकड़ की ही जरूरत होती है। ऊर्जा की लागत कम हुई है लेकिन यह अलग अलग देशों में एक जैसी नहीं होगी। यदि दक्षता बढ़ती है, बिजली की लागत कम होगी, यह स्थिति विकासशील देशों के लिये बेहतर होगी जहां कई लोग बिजली के लिये भुगतान नहीं कर पाते हैं। यहां तक कि भारत में हम एक तय आय स्तर से नीचे गुजर बसर करने वाली जनसंख्या को सब्सिडी देते हैं, यह सभी विकासशील देशों के मामले में सही साबित हो सकता है। सब्सिडी देने के मामले में कई सरकारों की वित्तीय क्षमता सीमित होती है, ऐसे में दक्षता को बेहतर करना सही मायनों में महत्वपूर्ण हो जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि गरीब लोग भी सरकारी सहायता के बिना ही बिजली का उपयोग कर सकेंगे।’’

‘‘ऊर्जा तक पहुंच और ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव हो इसके लिये विकासशील देशों को वित्त उपलब्धता जरूरी’’

आईएसए सम्मेलन के अध्यक्ष ने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव लाने के लिये विभिन्न साधनों के जरिये विकासशील देशों को वित्तीय उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है। ‘‘ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की बात तो दूर हमारी दुनिया का बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां लोगों की ऊर्जा तक पहुंच के लिये उनके पास वित्तीय सुविधा उपलब्ध नहीं है। जब तक हम इन देशों की वित्तीय सुविधाओं के साथ मदद नहीं करेंगे तब तक ऊर्जा तक पहुंच और उसमें बदलाव नहीं हो सकता है।’’

आईएसए अध्यक्ष ने विकसित देशों के लिये हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराने की उनकी प्रतिबद्धता को निभाने की जरूरत पर जोर दिया। ‘‘हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमें विकसित देशों से वित्त उपलब्ध हो। यह नहीं हो रहा है। क्योटो और पेरिस में जो संकल्प व्यक्त किया गया था उस पर अमल नहीं हो रहा है। कुछ हरित कोष सामने आये थे लेकिन जिन देशों को उसकी जरूरत थी वहां तक वह नहीं पहुंचे। भारत को इस तरह के कोषों की जरूरत नहीं है, भारत सरकार को मूलभूत सुविधाओं पर एक नया पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ा, लेकिन दूसरे देशों में यह नहीं होगा। हरित वित्त आना चाहिये, कल यहां बड़ी संख्या में वचन दिये गये, जिससे कि हमें प्रसन्नता हुई है। यह संख्या बढ़ेगी और यह होना चाहिये।’’

‘‘भारत 2030 के लिये तय कार्बनीकरण-समाप्ति के लक्ष्य से आगे निकलने को लेकर आश्वस्त’’

मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों, उद्योग जगत के सदस्यों और सम्मेलन में आये अन्य प्रतिनिधियों से कहा कि प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन कम रहने के बावजूद भारत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में योगदान के मामले में निर्णायक कदम उठा रहा है। ‘‘हमारा प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दुनिया में सबसे कम उत्सर्जन वाले देशों में से एक है। यह वैश्विक औसत का एक तिहाई ही है। वहीं विकसित देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व औसत के मुकाबले करीब तीन से चार गुणा तक है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हमारी सरकार ने स्पष्ट रूख अपनाते हुये कहा है कि हमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में योगदान करने की जरूरत है।’’

भविष्य की योजना के बारे में मंत्री ने कहा कि भारत को पूरा विश्वास है कि उसने 2030 के लिये जो लक्ष्य तय किया है वह उससे आगे निकलेगा। ‘‘आज हमारी गैर- जीवाश्म ईंधन क्षमता करीब 186 गीगावाट है, जिसमें से कि करीब 179 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा है जबकि शेष परमाणु है। वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तक पहुंचने के लिये हमने हर साल 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की योजना बनाई है। हमने ग्लास्गोव में यह वचन दिया था 2030 तक हमारी स्थापित क्षमता का 50 प्रतिशत गैर- जीवाश्म ईंधन से उपलब्ध होगी, हमें पूरा विश्वास है कि हम तब तक 65 प्रतिशत हासिल कर लेंगे। हम अपनी उत्सर्जन तीव्रता को भी 2030 तक हमारे तय लक्ष्य 45 प्रतिशत से भी आगे कम करने में सफल होंगे।’’

‘‘भारत में करीब 58 लाख टन हरित अमोनिया विनिर्माण क्षमता तैयार हो रही’’

मंत्री ने बताया कि हरित अमोनिया की करीब 58 लाख टन की विनिर्माण क्षमता भारत के विभिन्न हिस्सों में तैयार हो रही है। ‘‘हम अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बन रहित बनाने की दिशा में लगातार प्रयासरत रहेंगे। यह केवल नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया जैसी अन्य प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में भी होगा। हम दुनिया में हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के सबसे बड़े विनिर्माताओं में से एक बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। आखिरी बार जब मैंने देखा तब देश के विभिन्न भागों में हमारे पास हरित अमोनिया की 58 लाख टन विनिर्माण क्षमता पर काम हो रहा था। यह केवल शुरूआत मात्र है। हम विभिन्न विभागों में जल्द ही यह तय करने वाले हैं कि चाहे उर्वरक हो, रिफाइनिंग हो अथवा कोई अन्य क्षेत्र जहां जीवाश्म ईंधन की जरूरत पड़ती है, वहां वह हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया का इस्तेमाल शुरू करें। ’’

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा सचिव श्री भूपिंदर सिंह भल्ला, अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा सोसायटी के अध्यक्ष डा. दवे रेन्ने, एशियाई विकास बैंक में दक्षिण एशिया विभाग के महानिदेशक श्री केनिची योकोयामा, और आईएसए के महानिदेशक डा. अजय माथुर ने भी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।

सत्र को यहां देखा जा सकता है

सत्र के दौरान, ‘ग्लोबल सोलर रिपोर्ट्स आन टैक्नालाजी, इन्वेस्टमेंट्स एण्ड मार्किट्स – दूसरा संस्करण, और ‘‘हरित हाइड्रोजन इकोसिस्टम के विकास और प्रवर्धन का रोडमैप- आईएसए एडीबी एनईडीओ रिपोर्ट’’ को भी जारी किया गया।

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स्वच्छ ऊर्जा बदलाव हेतू नवीन प्रौद्योगिकी पर आयोजित इस उच्च स्तरीय सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य यही है कि जो चर्चा हुई है उसे वास्तविकता में बदला जाये। सम्मेलन में आईएसए सदस्य देशों के मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल, नीति निर्माता, विशेषज्ञ और उद्योग जगत के प्रमुख भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य आपसी सहयोग, नवीन खोज और ज्ञान को साझा कर दुनिया में वास्तविक बदलाव लाना और जलवायु परिवर्तन के मामले में तय वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में अहम पहल करना है। इसमें सौर ऊर्जा को पसंदीदा ऊर्जा बनाना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना, ऊर्जा पहुंच का विस्तार और इस प्रक्रिया में आगे बढ़ते हुये आर्थिक वृद्धि को मजबूती देना है।